Tuesday 3 December 2013

Shri Ram Darbaar

श्री राम की शरण में जब विभीषण आये तो सुग्रीव ने कहा कि प्रभु यह शत्रु का भाई है , शठ है जान पड़ता है भेद लेने आया है। प्रभु श्री हंसकर बोले कि मेरा भेद जानने को तो आपने भी तो श्री हनुमान को भेजा था और आज आप मेरे परम भक्त हैं। दूसरी बात इतने ऋषि मुनि अनंत काल से मेरा भेद जानने का ही तो प्रयास कर रहें हैं और मै जो अवतरित हुआ हूँ अपना भेद देने के लिए ही तो हुआ हूँ। तथा जो मनुष्य मेरा भेद जानने का प्रयास करता है वो शठ कदापि नहीं हो सकता। उसे ले आइये। जब विभीषण जी शरण में आ गए तो प्रभु ने मुस्कुरा कर श्री हनुमान की ओर देखा। क्योकि श्री हनुमान जी ही विभीषण जी को लंका में न्योता देकर आये थे। हनुमान जी ने कहा प्रभु श्री विभीषण जी को शरण में आपको लेना ही पड़ता। प्रभु बोलो कि क्यों लेना पड़ता तो हनुमान जी ने कहा प्रभु आप का दरबार न्यायालय नहीं है की कोई मनुष्य पाप और पुण्य के हिसाब अनुसार आपकी कृपा या दंड प्राप्त करे। आप का दरबार तो एक ओषधालय है की कोई कितना और किसी भी प्रकार का रोगी हो आपने तो उसे शरण देकर स्वस्थ ही करना है।

इसी प्रकार आप जैसे प्रभु को भी मुझ जैसे रोगी को स्वस्था प्रदान करनी पड़ेगी । दंड का प्रावधान आपके पास नहीं है।

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