Tuesday 31 December 2013

भक्ति और भगवान्



जय श्रीराम

असीम ब्रह्म कैसे ससीम होकर माँ कौशल्या अथवा यशोदा मैया की गोद में समां जाता है।

रामचरितमानस में जब प्रभु की भुजा काक्भुशुन्दी जी को पकड़ने दोड़ी तो वह भुजा सदा मात्र दो अंगुल के अन्तर से पीछे रही। और वृन्दावन में जब यशोदा मैया नटखट भगवान् श्यामसुंदर को बाँधने की कोशिश करती हैं तो सारे वृन्दावन की रस्सी भी मात्र दो अंगुल के फर्क से छोटी रह जाती है। 
जब भगवान् जी से पूछा गया की यह दो अंगुल का क्या रहस्य है तो वह मुस्कुराकर बोले एक अंगुल तो मेरी कृपा का है और दूसरी अंगुल जीव की इच्छा का है। जब तक जीव मुझे पकड़ने का प्रयास नहीं करेगा और फिर मै उस जीव पर कृपा नहीं करूँगा तो हमारा मिलन संभव नहीं होगा। अगर इश्वर और भक्त एक दुसरे को पकड़ने का पर्यास नहीं करते तो जीव और इश्वर का मिलन नहीं होगा।
इश्वर को श्रीराम विवाह के समय माँ सीता की पंचरंगी चुनरीके छोर द्वारा बाँधा गया और फिर श्यामसुंदर भगवान् जब राधारानी के बरसाने से रस्सी मंगवाई गयी तो भी भगवान् बन्ध गए।
जिस माँ की गोद में जाकर व्यापक ब्रह्म इतना छोटा हो गया उसके हाथ मे अगर रस्सी भी आकर छोटी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। माँ यशोदा के हाथ में रस्सी छोटी होने का कारण भगवान् श्यामसुंदर नहीं थे। क्योंकि भगवान् ने रस्सी से न बंधने के लिए अपने शरीर को तो बड़ा नहीं किया था फिर माँ यशोदा क्यों नहीं बाँध पायी। इसका कारण एक तो क्रोध के कारण बांधना चाहती थी और दूसरी ओर प्रेम के कारण उन्हें बाँधने में संकोच हो रहा था इसी कारण रस्सी छोटी रह जाती थी। माँ के क्रोध और संकोच के कारण दो अंगुल का फर्क रहा। मन में अगर किसी प्रकार का संशय है तो इश्वर को नहीं बाँधा जा सकता। तात्पर्य यह है कि भगवान् भक्ति के बंधन से बन्ध सकते हैं। माता सीता और राधारानी भक्ति का स्वरुप है। एक बार भक्ति के बंधन में जकड़े जाने के पश्चात इश्वर भक्ति देवी का ही अनुसरण करते दिखाई देते है। श्रीराम विवाह में माँ सीता की चुनरी से बंधे श्री राम श्री सीता के पीछे पीछे चलकर विवाह पूर्ण करते हैं।
जो इश्वर का पीताम्बर असीम है और जिसका कोइ छोर नहीं है जिसकी सीमा नहीं है वह इश्वर भी जब भक्ति की चुनरी के साथ बंधता है तो ससीम हो जाता है और फिर वह पकड़ा जा सकता है।

जय श्री राम
05.12.2013

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