Tuesday 3 December 2013

कर्म और कृपा

जय राम जी की।




मनुष्य कई विचारधाराओं को अपने मन में रखकर अपनी सहूलियत अनुसार उनका इस्रेमाल करता हुआ अपना विकास करने का पर्यास करता है। जब उसे सफलता प्राप्त होती है तो वह इसका श्रेय अपने कर्मो को अथवा अपनी बुध्धि या अपनी मेहनत को देता हुआ दीखता है। कभी कभी सबकी व्याख्या विस्तार से करता हुआ अंत में इस सफलता का श्रेय हरी कृपा को भी देता है। अक्सर कई मनुष्य के मन में यह संशय रहता है कि सफलता मेहनत से मिलती है , ईश्वर की कृपा से , अपने पूर्व जन्मो के संचित सत्कर्मो के फलानुसार या इस जन्म में प्राप्त श्रेष्ठ संस्कारो से। पूर्व जन्मो के संचित सत्कर्मो और इस जन्म में प्राप्त श्रेष्ठ संस्कारों की चर्चा हम इस समय ना करके इन्हें यहीं विराम देते हैं।

प्राय: यह देखा जाता है कि यह एक चर्चा का विषय बना रहता है कि मनुष्य मेहनत से सफलता प्राप्त करता है या इसमें ईश्वरीय कृपा का भी योगदान होता है अथवा केवल मेहनत ही करनी चाहिए या केवल हरी कृपा की ओर ही दृष्टि रखनी चाहिए। परन्तु संतोषजनक उत्तर की प्राप्ति एक अतृप्त इच्छा ही रह जाती है।

श्री रामचरितमानस में अगर यह लिखा है कि " होइहि सोई जो राम रची राखा " तो गीता के कर्म के उपदेश का क्या महत्व है।

आओ समझे

श्री राम और उनकी सेना समुन्द्र के इस पार है और समुन्द्र पर सेतु बना कर उस समुन्द्र को पार करना है। जाम्बवान जी ने नल और नील को बुलाकर कहा की श्री राम के प्रताप को स्मरण करके सेतु बनाओ। सारे वानर बहुत ऊँचे ऊँचे पर्वतो और वृक्षों को उठा लाकर नल और नील को देते हैं। वे अच्छी तरह से उनका सुंदर सेतु बनाते हैं।
जाम्बवान जी प्रभु श्री राम के पास आकर बोले कि प्रभु सेतु तो बन गया है परन्तु वह इतना संकीर्ण है की पूरी सेना को पार होने में बहुत अधिक समय लग जाएगा और निश्चित अवधि भी समाप्त हो सकती है।
कृपालु श्री राम सेतुबंध के तट पर खड़े होकर समुन्द्र का विस्तार देखने लगे। करुणा के मूल प्रभु के दर्शन के लिए सब जलचरों के समूह प्रकट हो गये। जिनके सौ सौ योजन के बराबर विशाल शरीर थे। वे सब प्रभु के दर्शन कर रहें हैं, हटाने से भी नहीं हट रहे हैं। उनकी आड़ के कारण जल नहीं दिखाई पड़ता। सारी सेना उन जलचरो की पीठ पर भी सवार होकर कुछ ही समय मे उस पार पहुच गयी।
सुग्रीव जी यह सब विस्मित होकर देखते जा रहे हैं की जब प्रभु के दर्शन देने से ही इतना विशाल सेतु निर्मित हो सकता था तो श्री राम ने वानरों से इतना परिश्रम क्यों करवाया। जब नहीं रहा गया तो सुग्रीव ने श्री राम से पूछ ही लिया। श्री राम ने हंसकर उत्तर दिया कि मेरी कृपा का सेतु तो आपसब के पुरुषार्थ द्वारा निर्मित सेतु पर खड़े होकर ही तो बना है।
अथार्त जब तक मनुष्य कर्म नहीं करता तो मेरी कृपा भी प्राप्त नहीं होती।

आओ कर्म और कृपा शब्दों को समझे ।
कर और म से कर्म बनता है जब कर में मै आ जाती है तो कर्म होता है और कृपा में म (मै) नहीं होता। कर सब कुछ ,पर मै को छोड़कर, यही श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म का उपदेश देते हुए कहते हैं।


जय श्री राम

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