Tuesday 3 December 2013

Jeev Ke Bhav

 जय राम जी की एक मनुष्य कितने भावों को महसूस करके अपना जीवन जीता है। ये तो अनगणित है और सब जानते हैं ,,,,पर मैं ,,,कहता हूँ ,,,कुछ बात समझाने के लिये,मनुष्य को जब देह रोग होता है तो वह जान जाता हैै और इस रोग के निवारण हेतु वह चिकित्सक के पास जाकर इसका इलाज करवाता है। और बिना किसी बहस क़े औषधि लेता है। चिकित्सक कुछ परहेज बताता है और कुछ औषधि भी देता है फिर औषधि लेने के नियम भी बताता है। जिस से उस रोग का निवारण हो सके, और रोगी चिकित्सक के परामॆश से स्वस्थता भी अनुभव करता है। परन्तु मन का रोग होने पर वह अपने को रोगी ना मानकर तकॆ वितकॆ में पङ कर दु:खौं को बढावा देता है। उस समय उसे एक ऐसे ग्यानी की तलाश होती है जो उसका उपचार कर सके। ये मन के रोग कैसे और क्योंकर होतें हैं? हर मनुष्य के मन मे हर समय अनेकों भावों का आवागमन चलता रहता है। मुख्यता काम, करोध, मद, लोभ और अहंकार का जोर अधिक रहता है। जैसे केवल तीन मुख्य रंगो (लाल, हरा, नीला) से अनेकों रंगो की रचना की जाती है उसी तरह इन पाँच भावों से भी अनेकों भावों की रचना होती है जैसे ममता, दया, राग, मोह, खुशी, दुख, वैराग्य, वीरता, कायरता, सन्देह, विश्वाश, डर, हीनता, दीनता, दान, लज्जा, भक्ति, संकोच, कृपा, उदारता, सम्मान, कलह, तिरस्कार, सावधानी, चंचलता, भजन, उपदेश, रस, विवेक, धैयॆ, उपहास,आशा, निराशा, त्याग, हिंसा इत्यादि। आजकल ये देखा जाता है कि हमारे पास सबकुछ होने पर भी मन खुश नही रहता। मन मे एक खालीपन रहता है। इसका अथॆ है कि हमे मन का रोग है परन्तु हम यह जानकर भी इसका उपचार करने की कौशिश नहीं करते जब तक यह मन का रोग हमारे तन का रोग नही बनता। इस तरह के मन के रोग कैसे ठीक हों यह तो सोचना ही पङेगा और इनका उपचार कैसे होगा यह भी जानना आवश्यक है। अभी राम राम 

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