Tuesday 3 December 2013

भगवान् राम और भगवान् शिव

जय राम जी की।

स्वतंत्रता और नियंत्रण ये दो शब्द परस्पर विरोधी हैं। लेकिन एक दुसरे के पूरक हैं। स्वतंत्रता जीव की स्वाभाविक अभिलाषा है पर नियंत्त्रण भी आवश्यक है तथा नियंत्रण में कारावास की अनुभूति न हो इसलिए इसमे स्वतंत्रता भी आवश्यक है। शिव जी स्वतंत्रता के भगवान् हैं और राम जी नियंत्रण के भगवान है। भगवान् राम मर्यादा में रहते हैं और भगवान् शिव मर्यादा का उपहास उड़ाते दिखते हैं। आसुरी या राक्षसी प्रवर्ति के जीव स्वेच्छानुसार अपनी इच्छाओ की पूर्ति चाहते हैं तभी वे शिव भगवान् के वास्तविक स्वरूप को न समझने के कारण भगवान् शिव की पूजा में आस्था रखते हैं। प्रत्येक भोगवादी प्रवर्ति का व्यक्ति स्वेच्छाचार की छूट चाहता है तभी वह श्री शंकर भगवान् की भक्ति की ओर अग्रसर होता है। जबकि यह सिर्फ भ्रांत विचारो पर ही आधारित है। भगवान् शिव की नग्नता तथा उनके साथ जुड़े मादक पदार्थो में उसे अपनी ही इच्छा के दर्शन होते है। क्या श्री शंकर भगवान् का वास्तविक स्वरूप यही है? बाहरी दृष्टि से देखने पर मर्यादा के विरुद्ध दिखाई देने वाले भगवान् शंकर के कर्म उनके गहरे स्वरुप को दर्शाते हैं। मर्यादा का पालन करना एक व्यक्ति या समाज की आवशाक्ताओ के अनुसार ही बनाया गया है। जोकि हर समय और स्थान के लिए उपयोगी भी नहीं है। एक मनुष्य अपने आप में अलग होते हुए भी समाज का ही हिस्सा है और समाज को सुचारुरूप से चलाने के लिए किसी भी एक मनुष्य को पूर्णरूप से स्वेच्छा से चलने की अनुमति नहीं दी जा सकती तभी नियंत्रण की आवश्यकता होती है। जब शंकर भगवान् समाज में अथवा व्यकि में मर्यादा के पालन हेतु कारावास की स्थिति को अनुभव करते देखते हैं तो वह इस मर्यादा का उपहास उड़ाते दिखते हैं। जब एक मर्यादित व्यक्ति वस्त्रो के आवरण के बोझ से दबे होने पर भी कर्मो द्वारा अपनी कुंठित वासनाओं को उजागर होने से नहीं रोक पाता तो शंकर भगवान् अपनी नग्नता द्वारा अपनी श्रेष्टता सिद्ध करते हुए दिखते हैं। तात्पर्य यह है कि अगर कोई व्यक्ति आडम्बरो के वस्त्रों से अपनी अंदरूनी नग्नता को ढकने को मर्यादा का नाम देता है तो भगवान् शंकर अपनी बाहरी नग्नता की श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं ।इस बात से हम यह निष्कर्ष निकाल पाते हैं कि मनुष्य द्वारा निर्मित यह समाज चलाने हेतु हमें स्वतंत्रता और नियंत्रण दोनों की ही आवश्यकता होती है। जैसे किसी वाहन को सुचारुरूप से चलाने के लिए गति एवं गति निरोधक दोनों ही चाहियें ।

जय श्री राम

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