Sunday 29 December 2013

ईश्वर की समदर्शिता


जय राम जी की।




ईश्वर समदर्शी हैं अथार्त ईश्वर सब पर समान दृष्टि रखते हैं| इस धारणा से हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ईश्वर सबको समानता से देखते हैं| इस  दृष्टिकोण से हम यह मानते हैं कि हम छोटे हैं अथवा बड़े, निर्बल है या बलवान, ज्ञानी हैं या अज्ञानी, धनहीन हैं या धनवान, ईश्वर हम सब पर समदृष्टि रखते हैं| इसको और विस्तार देकर हम यह भी मान सकते हैं कि दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊँच-नीच, अमृत-विष, सुजीवन (सुंदर जीवन)-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, सम्पत्ति-दरिद्रता, रंक-राजा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य यह अपने आपमें विपरीत होकर भी ईश्वर की समदृष्टि के दृष्टिकोण के द्वारा समान रूप से देखे जाते हैं| ईश्वर भेदबुद्धि नहीं रखते और सबको समान समझते हैं|

 अब प्रश्न यह उठता है कि फिर श्रीरामजी ने सुग्रीव को प्रेम और बाली को मृत्यु क्यों दी, क्यों श्री हनुमानजी से प्रथम भेंट में ही श्री लक्ष्मणजी के सामने श्री हनुमानजी को “ तुम मम प्रिय लक्ष्मण से दूना “ और फिर रावण वध के पश्चात अयोध्या में अपने सब मित्रों को श्रीभरत से दूना प्रिय बताया| अगर ईश्वर समदर्शी हैं तो ईश्वर दूना और चौगुना की भाषा क्यों बोलते हैं|

 अब प्रश्न यह भी उठता है कि अगर कोई बलवान किसी निर्बल को मारता है तो ईश्वर को क्या, समदर्शी होने हेतु निर्बल की रक्षा नहीं करनी चाहिए? क्योंकि ईश्वर समदर्शी हैं उनकी दृष्टि में निर्बल और बलवान समान हैं, तो इसमें भी ईश्वर के समदर्शी होने की सार्थकता सिद्द नहीं होती|


आओ समझे श्रीरामचरितमानस में बाली के प्रसंग के सन्दर्भ से:-

यह सबको ज्ञात है कि बाली जो पुन्यभिमान का रूप है वह बाली रावण को हरा कर छ: महीने तक अपनी काख में दबा कर एक प्रमाणपत्र की तरह लोगों को दिखाता फिरा था| बाली रावण को मार तो सकता नहीं था पर अभिमान हेतु रावण पर अपनी विजय को दर्शाता फिरा, यह जानकर भी कि ईश्वर अवतार लेकर रावण को मारने वाले हैं|

 जब बाली सुग्रीव से युद्ध करने निकला तो उसकी पत्नी तारा ने बताया कि सुग्रीव ने जिनसे मित्रता की है वे बहुत बलवान हैं तो बाली बोला वह तो साक्षात ईश्वर हैं| बाली ने ईश्वर के स्वरूप को जानने की घोषणा भी की, बाली जानता था कि ये ईश्वर हैं फिर भी वह युद्ध करने गया तब श्रीतुलसीदास जी ने लिखा “अस कहि चला महा अभिमानी “ तात्पर्य यह है कि जिसकी वाणी में ज्ञान होने पर भी भीतर अभिमान भरा हो तो वह तो महा अभिमानी है | इसीलिए श्रीराम बाली को बाण मारते हैं और बाण लगते ही बाली का अहंकार दूर हो गया| अब केवल पुन्य रह गया| तब बाली ने पूछा कि “ मैं बैरी सुग्रीव पियारा “ तो श्रीराम ने बाली से कहा, मुझे बाध्य होकर तुम्हारे ऊपर बाण चलाना पड़ा| मेरे बाण चलाने का मतलब यही है कि फोड़ा होने पर जैसे चिकित्सक अस्त्र द्वारा फोड़े को काट डालता है यह अभिमान भी एक फोड़ा था जिसे मैंने काट दिया।इसके पश्चात् श्रीराम ने बाली को प्राण रखने को कहा| परन्तु बाली बोला मेरा जीवन तो आपके दर्शन से ही सार्थक हो गया अब मै प्राण नहीं रखना चाहता।  तब प्रभु श्री राम बोले की चलो यहाँ नहीं रहना चाहते तो मेरे धाम चलो तुम्हारा धाम मैंने सुग्रीव को दे दिया तुम मेरे धाम चलो | प्रभु के प्रेम में भी कृपा है और क्रोध में भी कल्याण है । सुग्रीव से प्रेम किया और उसे राज्य दिया, बाली पर प्रहार किया उसे अपना धाम दे दिया ।

माता शबरी ने प्रभु श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने को कहा था क्योंकि वह जानती थी कि सुग्रीव निरभिमानी है और बाली अभिमानी है| माता सीता का पता अभिमान के रहते हुए कोई नहीं लगा सकता क्योंकि भक्ति केवल अभिमान त्यागने से ही प्राप्त हो सकती है|

ईश्वर जब तक निराकार, निर्गुण है वह सूर्य की भांति सबको समान रूप से प्रकाश देते हुए समदर्शी है। जब वही ईश्वर आकार लेकर अवतरित होता है तो वह भी गुणात्मक हो जाता है और उसके यहाँ भी एक दुनी दो और दो दुनी चार होता प्रतीत होता है।

जय श्रीराम

29.12.2013


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